साम्प्रदायिक सोच से भटका युवा..

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साम्प्रदायिक सोच से भटका युवा..

 

साम्प्रदायिक सोच से भटका युवा..विभु पुरी

 

आज के परिदृश्य में सामाजिक चिंतक विभु पुरी युवाओं पर डाल रहे है प्रकाश
आज देश का कुछ युवा इस तरह सामाजिकता से भटका हुआ है कि उसकी सोच भी साम्प्रदायिक हो चुकी है, संवेदना शून्य ब्यक्ति मानसिक संतुलन खो देता है पर संवेदनहीन ब्यक्ति वैचारिक संतुलन खो देता है आज साम्प्रदायिकता इस कदर सर चढ़ कर बोल रही है कि हमारे देश की वो हस्ती जिनकी बदौलत एक सूत्र में बधता भारत मार्ग बदलने को मजबूर हो जाता है हमारी सम्वेदनाएँ क्या इतनी भी स्वावलम्बी नही रह गई है कि हम दिवंगत आत्माओं पर धर्म विशेष को लेकर छीटाकशी करे हमारी सम्वेदनाएँ क्या शून्य की तरफ अग्रेषित है ।
चाहे मरहूम राहत इंदौरी हों चाहे स्वर्गीय रोहित सरदाना हों हमने धर्म विशेष को लेकर या इनकी सामाजिक सोच को लेकर इनको श्रधांजलि देने की जगह इनका उपहास उड़ाने में भी या मरणोउपरांत इनपर हसने का जो घृणित कार्य किया उसे किसी भी हाल में सभ्य समाज स्वीकार नही करेगा इस मानसिक सोच के पीछे आजादी के बाद से ही विरोधी देशों का षणयंत्र चला व फली भूत भी
हुआ जिनके कारण कई बार देश दंगो की आग में
जला।
सन 1950 से लेकर हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मरने के समय तक देश मे 16 राज्यो में 243 दंगे हुए, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के कार्यकाल में 15 राज्यो में 337 दंगे हुए,तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में 16 राज्यो में 291 दंगे हुए ।
देश मे साम्प्रादायिक तनाव हमे हमारे पड़ोसी से मिला,धार्मिक उन्माद को फलीभूत करके जो कुचक्र हमारे पड़ोसी ने चला उसमे हम फसते व उलझते गए ।
सन 1857 की क्रांति के बाद से ही हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता को तोड़ने का काम प्रारम्भ हुआ, लेकिन 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने साम्प्रदायिक दंगे कराकर उनका हिन्दू मुसलमानों के बीच प्रचार शुरू किया इस झूठे प्रचार के कारण हिन्दू व मुस्लिमो के बीच खाई बढ़ती गई, इसका परिणाम ये हुआ कि सन 1924 में कोहार में बहुत ही अमानवीय ढंग से हिन्दू मुस्लिमो के दंगे हुए दोनों तरफ से काफी लोग हताहत हुए ।
अंग्रेजो द्वारा किया गया ये षणयंत्र कि भारत को कई टुकड़ो में करकर कमजोर करना है, हिन्दू और मुस्लिमो के बीच की खाई पैदा करके आपस मे विद्रोह कराकर करना है जिसमे सफलता मिल सकती है और उनमें वो सफल भी हुए ।
आजाद भारत मे पहला युद्ध कश्मीर के लिए हुआ, 3 सितंबर सन 1947 में पाकिस्तान ने कबाइलियों की मदद से धावा बोलकर कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम करना शुरू किया, जिसे कश्मीर के राजा हरिसिंह ने गम्भीरता से नही लिया, इसके चलते आधे से ज्यादा कश्मीर में हिंदुओं का पलायन शुरू हुआ पकिस्तान ने अपने इस आप्रेसन का नाम दिया “आप्रेसन गुलमर्ग” 22 अक्टूबर सन 1947 तक हथियार बद्ध कबाइलियों की फौज ने नरसंहार किया और जब तक भारतीय सेना पहुँचती उन्होंने आधे कश्मीर पर कब्जा कर लिया भारतीय सेना इतने विलम्ब से क्यो पहुँची इसपर आज भी प्रश्नचिन्ह है ।
भातर विभाजन के बाद हैदराबाद के निजाम ने भारत मे विलय के कागजाद पर दस्तखत नही किए वे जिन्ना व अंग्रेजो की चाल के शिकार हो चले थे, जिसके चलते वे चहते थे कि हैदराबाद एक स्वतंत्र राष्ट्र बने लेकिन ये सम्भव इसलिए नही था कि हैदराबाद की हिन्दू बाहुल्य जनता इसके खिलाफ थी ।
निजाम किसी प्रकार का दँगा फसाद नही चाहते थे लेकिन राज्य के काशिम रिजवी के नेतृत्व में कट्टरपंथी मुसलमानों ने दँगा शुरू किया, और हिंदुओं को हैदराबाद से पलायन करने पर मजबूर कर दिया रिजवी ने एक सेना बनाई थी जिसे रजाकार कहा जाता था, तत्कालीन सरकार पर दबाव बनाना ही उनका उद्देश्य था ।
अगर जनवरी 1950 से जुलाई 1995 के बीच हुए दंगो को देखें तो इन 45 सालों में ही दिल्ली में ही 1192 दंगे हुए इंसमे 84 के दंगे और नेल्ली के दंगे को शामिल करें तो 1194 दंगे हुए ।
18 फरवरी 1983 में हुए नेल्ली के सामूहिक हत्याकांड में भी हज्जरों लोग दंगे की बलि चढ़ गए ।
1528 में अयोध्या में जहां हिन्दू समुदाय अपने आराध्य देवता का जन्मस्थान मानता था वहाँ मुगल सम्राट बाबर ने मन्दिर तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा ।
1853 में पहली बार इस स्थल के पास साम्प्रदायिक दंगे हुए ।
सन 1992 में 6 दिसम्बर को कारसेवकों द्वारा ढांचा ढहाने के परिणाम स्वरूप देश भर में हिन्दू मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमे 2000 से ज्यादा लोग मारे गए ।
अयोध्या से लौट रहे रामभक्त कारसेवकों की ट्रेन को गोधरा में आग लगा दी गई जिससे उसकी एक बोगी में सभी कारसेवक जिंदा जल गए वो देश का काला दिन था 27 फरवरी 2002 का जिस दिन 59 कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया था ।
पूरे गुजरात मे प्रतिक्रिया स्वरूप दंगे भड़के जिसमे लगभग 2000 लोग मारे गए, इन दंगों की चर्चा सर्वाधिक हुई जब्कि गुजरात मे दंगो की कालिमा का इतिहास है ।
सन 1969 में अहमदाबाद में दंगे हुए थे जिसमें लगभग 5000 लोग मारे गए थे, उस वक्त गुजरात मे कांग्रेस के मुख्यमंत्री हितेंद्र भाई देसाई थे और भारत मे प्रधानमंत्री इंदिरागांधी थी, इसके बाद 1985 में फिर गुजरात मे दंगे हुए तब गुजरात के कांग्रेस के मुख्यमंत्री माधव जी सोलंकी थे और प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, इसके बाद 1987 में गुजरात मे फिर दंगे हुए और तब गुजरात के मुख्यमंत्री कांग्रेस के अमर सिंह चौधरी थे, 1990 में गुजरात फिर दंगो की आग में दहला उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री कांग्रेस के चिमन भाई पटेल थे, जबकि 1992 में हुए दंगो के समय भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री छिमा भाई पटेल थे सवाल ये उठता है गुजरात दंगों की आग में कई बार झुलसा जिसमे हजारों लोग मारे गए जब्कि सर्वाधिक चर्चा गोधरा कांड के बाद हुए दंगो की रही जब्कि कांग्रेस सरकार में सर्वाधिक दंगे हुए ।
महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार में सन 2004 से लेकर सन 2008 तक 681 दंगे हुए हमारे पड़ोसी देश द्वारा हमारे विधटन की जो नींव साम्प्रदायिक उन्माद से रख्खी गई उसमे हम उसे कैसे परास्त करें चर्चा तो इस विषय पर उठनी चाहिए क्या हम साम्प्रदायिक उन्माद में डूब कर विरोधी देश को सफल होने देंगे सवाल है प्रबुद्ध वर्ग से जो हम आने वाली पीढ़ियों का साम्प्रदायिक उन्माद की विरासत देंगे या सामाजिक चेतना की जिससे साम्प्रदायिक उन्माद खत्म हो और सामरिक जीवन की चेतना जागृत हो ।

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