पटना : केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में जदयू को बहुत कुछ मिलना था, लेकिन चिराग पासवान को सबक सिखाने के चक्कर में नीतीश को लगभग खाली हाथ रहना पड़ा। दरअसल, भाजपा पशुपति पारस को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाना चाहती थी, जबकि नीतीश उन्हें हर हाल में कैबिनेट मंत्री बनाने पर अड़ गए। नतीजे में नीतीश को पारस को अपनी पार्टी के कोटे से मंत्री बनाना पड़ा। दरअसल भाजपा ने जदयू को दो कैबिनेट और एक राज्य मंत्री के पद का प्रस्ताव दिया था। भाजपा लोजपा को सरकार में शामिल करने के मामले में ऊहापोह में थी। जबकि नीतीश चाहते थे कि पशुपति पारस को मंत्री बना कर चिराग को अंतिम सियासी झटका दे दिया जाए। जब भाजपा इसके लिए तैयार नहीं हुई तो नीतीश ने अपनी पार्टी के कोटे से पारस को मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा। लंबी बातचीत के बाद भाजपा इसके लिए तैयार हो गई। विधानसभा चुनाव में चिराग की ओर से मिले झटके से नीतीश बेहद नाराज थे। लोजपा में बगावत की पटकथा उनके इशारे पर ही लिखी गई। उनके आश्वासन पर ही पशुपति ने चिराग के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें लोकसभा में संसदीय दल का नेता और पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटा दिया। छह में से पांच सांसद चिराग के खिलाफ हो गए। नीतीश चाहते थे कि दिवंगत रामविलास पासवान की जगह मंत्री बन
धरा रह गया फॉर्मूला
नीतीश पहले चार पद देने के लिए भाजपा पर दबाव बना रहे थे। उनकी योजना विस्तार के जरिए अति पिछड़ा और दलित समुदाय के साथ अगड़ों को संदेश देने की थी। इस क्रम में उन्हें ललन सिंह, आरसीपी सिंह, रामनाथ ठाकुर और संतोष कुशवाहा को मंत्री बनाना था। मगर पशुपति के नाम पर पेंच फंसने के बाद तस्वीर बदल गई।
प्रतीकात्मक ही रही सहयोगियों की भूमिका
ऐसा लग रहा था कि मंत्रिमंडल के विस्तार में सहयोगियों का दमखम नजर आएगा और सरकार में सहयोगियों की संख्या बढ़ेगी। इसके लिए वाईएसआर कांग्रेस और अन्नाद्रमुक से भी बातचीत हो रही थी। हालांकि विस्तार में लोजपा, जदयू और अपना दल के रूप में सहयोगी एक-एक पद ही हासिल कर पाए। पहले सहयोगियों के पास कैबिनेट के तीन और राज्य मंत्री का एक पद था। अब सहयोगियों के पास कैबिनेट के दो और राज्य मंत्री के दो पद हैं।