ममता सरकार पर मानवा‌धिकार आयोग ने लगाये गंभीर आरोप

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डिजिटल डेस्क : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने चुनाव बाद हिंसा के मामलों की सीबीआई से जांच कराये जाने की सिफारिश की है। कहा गया है कि हाई कोर्ट की मॉनिटरिंग में एक स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (सिट) का गठन किया जाए। रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी एक कविता में कहा था : ‘चित भयमुक्त हो और सिर ऊंचा बना रहे’, और उन्हीं के बंगाल में बलात्कार, हत्या, आगजनी और लूट की हजारों घटनाएं घटी हैं। कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं की गई तो यह लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी। देश के सौ करोड़ से अधिक लोग इसे देख रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून के शासन के तीन प्रमुख अंग हैं, लोगों की अस्मिता, लोकतंत्र और न्याय। हिंसा की इन घटनाओं से यह साबित हो गया है कि यहां कानून का शासन नहीं रह गया था। इसने संदेश दिया है कि सत्तारूढ़ दल के सिवा और किसी दल का समर्थन नहीं करें। हिंसा की इन घटनाओं का असर राज्य में भविष्य में होने वाले चुनावों पर पड़ेगा और लोग सत्तारूढ़ दल के सिवा किसी और दल को वोट देने से डरेंगे। अगर यह स्थिति बनी रही तो राज्य में कभी भी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पाएगा।

पीड़ितों को न्याय दिलाने और आपराधिक न्याय व्यवस्था में उनके विश्वास की बहाली के लिए हत्या, अस्वाभाविक मौत, बलात्कार और गंभीर रूप से घायल करने के मामलों की सीबीआई से जांच करायी जाए। कोर्ट इसकी मॉनिटरिंग करें और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज को इसका प्रमुख बनाया जाए। एक मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया जाए और वह एक अंतराल पर अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश करे। प्रभावित जिलों के लिए ऑब्जॉर्वर नियुक्त किए जाएं और इसके लिए राज्य के बाहर के अफसरों का चयन किया जाए। प्रत्येक ऑब्जॉर्वर के लिए अलग फोन हो और वे कोर्ट द्वारा निर्धारित जिलों की मॉनिटरिंग करेंगे। उन स्थानीय अफसरों की जानकारी कोर्ट को देंगे जो कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं कर रहे हैं। ये ऑब्जॉर्वर अपनी रिपोर्ट मॉनिटरिंग कमेटी के प्रमुख को दिया करेंगे। हिंसा के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुंचाये जाने की जरूरत है ताकि वे सामान्य जीवन में लौट सकें। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के अफसरों की जिम्मेदारी तय की जाए और जो दोषी हैं उन्हें सजा दी जाए। इस तरह के अफसरों की एक सूची भी पेश की गई है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि नौकरशाही में सुधार की आवश्यकता है। काबिल अफसरों को स्वीकृति दी जाए और उन्हें बताया जाए कि उनकी प्रतिबद्धता राजनीतिक आकाओं के बजाए आम लोगों के प्रति है। मानवाधिकार आयोग के सदस्य राजीव जैन की अध्यक्षता में छह सदस्यों की एक कमेटी ने यह रिपोर्ट सौंपी है। यहां गौरतलब है कि हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस आई पी मुखर्जी, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस सुब्रत तालुकदार के स्पेशल बेंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को यह जिम्मेदारी सौंपी थी।

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