कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।
गोण्डा: बरसात के मौसम में हर साल संक्रामक बीमारियां पैर पसारने लगती है। इसी के साथ इलाज के नाम पर लोगों की जिंदगी से खिल वाड़ करने वाले झोलाछाप भी सक्रिय हो जाते हैं।शहर से लेकर देहात तक झोलाछापों का जाल फैला हुआ है, जिन्होंने झोला छोड़कर क्लीनिक व हास्पिटल तक खोलने शुरू कर दिए हैं।इससे लोगों के लिए डिग्रीधारक डाक्टर व झोलाछापों में भेद करना मुश्किल हो रहा है। चिंता की बात ये है कि शिकायतें मिलने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की नींद नहीं टूट रही।लोगों का कहना है स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में ही झोलाछापों का धंधा फल-फूल रहा है।पहले तो कार्रवाई होती नहीं, यदि होती भी है तो कुछ दिनों बाद ही झोलाछाप अपना धंधा फिर शुरू कर देते हैं।मानों, सीलिंग की कार्रवाई के बाद स्वास्थ्य विभाग की चाबी झोलाछापों के पास ही रह जाती हो।जिले में करीब 11 सौ ग्राम पंचायतें हैं।एक ग्राम पंचा यत में कम से कम दो या तीन झोलाछाप मिल ही जाएंगे।शहरी क्षेत्र में भी झोलाछापों की क मी नहीं है।इस तरह दो हजार से अधिक झोला छाप होने का अनुमान है।विभाग की बात करें तो सीएमओ कार्यालय में सैकड़ो से अधिक पैथालोलाजी लैब,क्लीनिक नर्सिंग होम, अल्ट्रा साउंड सेंटर पंजीकृत हैं।फिर भी विभाग को लोगों की सेहत की कोई चिंता नहीं। सामान्य हो या गंभीर मरीज, झोलाछाप हर मरीज का स्वागत ग्लूकोज की ड्रिप लगाकर करते हैं।ऐसे लोगों ने क्लीनिक ही नहीं, नर्सिंग होम तक खोल रखे हैं।मरीज को लंबे समय तक इलाज के नाम पर रोके रखा जाता है और जब मामला बिगडऩे लगता है तो आनन-फानन रेफर कर देते हैं।यही नहीं,कई हॉस्पिटल में झो लाछाप मरीजों का ऑपरेशन तक कर रहे हैं। ऐसे कई मामलों की जांच भी लंबित हैं। झोलाछापों के खिलाफ शिकायतें बढ़ने पर विभाग कार्रवाई के नाम पर केवल दिखावा करता है।झोलाछापों को संरक्षण देने में सीएम ओ कार्यालय के बाबू भी पीछे नहीं।वे अफसरों को केवल उन्हीं झोलाछापों के यहां टीम पहुंच ती है, जो कर्मचारियों को फील गुड नहीं कराते यदि अधिकारी कार्रवाई कर दे तो उसे मैनेज करने में जुट जाते हैं।कई बार अधिकारियों की भूमिका भी सवाल उठ चुके हैं।ऐसा भी हुआ है कि शिकायत पर छापेमारी हुई।सूत्र बता रहे हैं कि झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ रिपोर्ट बनी, मगर कार्यवाही दब गई।