कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। संसद का शीतकालीन सत्र 2024 का अंत विवादों, हंगामों और राजनीतिक संग्राम के बीच हुआ। इस सत्र में 105 घंटे काम हुआ और कई अहम मुद्दों पर बहस हुई, लेकिन कामकाजी घंटों में भारी कमी देखने को मिली, जो मुख्य रूप से विपक्षी दलों के हंगामे और सरकारी पक्ष के रुख के कारण था।
सत्र का कुल समय और कामकाजी घंटे:
संसद का यह सत्र 2024 में 4 दिसंबर को शुरू हुआ था और 23 दिसंबर तक चला। इस दौरान कुल 17 कार्य दिवसों में से सिर्फ 105 घंटे ही काम हो पाए, जो इस सत्र की कार्यकुशलता पर सवाल उठाते हैं। असल में विपक्ष ने कई अहम मुद्दों पर हंगामा किया, जैसे महंगाई, बेरोजगारी, और किसानों के मुद्दे, जबकि सरकार ने इन मुद्दों पर बहस से बचने की कोशिश की। इसके चलते कई बिलों को पारित करने में देरी हुई, और कुछ मामलों में चर्चाएं भी रुक गईं।
विपक्षी दलों का विरोध और हंगामा:
सत्र के दौरान विपक्षी दलों ने सरकार पर कई मोर्चों पर हमला बोला। महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को लेकर विपक्ष ने सशक्त प्रदर्शन किया। विपक्षी नेताओं का आरोप था कि सरकार ने आम जनता के मुद्दों से मुंह मोड़ लिया है और अपने राजनीतिक एजेंडों को प्राथमिकता दी है। उन्होंने मांग की कि सरकार महंगाई के खिलाफ तत्काल कदम उठाए और बेरोजगारी के मसले पर ठोस नीति बनाए।
इसके अलावा, किसान आंदोलन और कृषक बिलों को लेकर भी विपक्ष ने सरकार से जवाब मांगा। विपक्ष का आरोप था कि सरकार किसानों के हितों की अनदेखी कर रही है और उनके अधिकारों को छीनने की कोशिश कर रही है। इसी तरह, कई अन्य मुद्दों पर भी विपक्ष ने सरकार के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन किए, जिससे संसद का कामकाजी समय प्रभावित हुआ।
सरकार का रुख और विधायी कार्य:
सरकार ने कई अहम विधेयकों पर चर्चा की योजना बनाई थी, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, शिक्षा, और महिला सशक्तिकरण से जुड़े बिल शामिल थे। हालांकि, विपक्ष के विरोध के कारण इन विधेयकों पर चर्चा और पारित कराने में समस्याएं आईं। सरकार ने विपक्ष के हंगामे को लेकर यह दावा किया कि विपक्षी दल केवल सरकार की छवि को धूमिल करना चाहते हैं और संसद के कामकाजी घंटों को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं।
सरकार ने इस दौरान कुछ आवश्यक विधेयकों को पारित कराने में सफलता हासिल की, लेकिन विपक्षी दबाव के कारण कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस का मौका नहीं मिल पाया।
संसदीय कार्यवाही और समितियों का कार्य:
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विभिन्न समितियों का काम जारी रहा। हालांकि, कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए संसद का समय कम रहा, लेकिन समितियों ने अपनी रिपोर्टें तैयार कीं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर चर्चा की गई। इन समितियों ने कुछ सुझाव भी दिए हैं, जिन पर आगे काम किया जाएगा।
सत्र का समापन और भविष्य की योजनाएं:
संसदीय सत्र के अंत में विपक्ष और सरकार दोनों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किए। विपक्ष ने दावा किया कि सरकार ने विपक्षी आवाज को दबाने की कोशिश की और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर किया। वहीं, सरकार ने कहा कि विपक्ष केवल राजनीतिक कारणों से कामकाजी सत्र को बाधित कर रहा था। संसद का यह सत्र आगामी चुनावों के लिए अहम साबित होगा, क्योंकि इससे यह स्पष्ट हुआ कि संसद में बहस और चर्चाओं की गुंजाइश कम हो रही है और राजनीतिक संग्राम बढ़ रहा है। यह भी देखा जाएगा कि विपक्ष और सरकार आगामी सत्र में किस तरह के मुद्दों पर आमने-सामने होंगे और क्या वे एक दूसरे के खिलाफ और भी जोरदार विरोध प्रदर्शन करेंगे। संसद का शीतकालीन सत्र, जो कि केवल 105 घंटे काम कर सका, राजनीति, हंगामे और विरोध प्रदर्शनों से भरा रहा। इस दौरान विपक्ष और सरकार के बीच गहरी राजनीतिक खाई दिखाई दी, और इससे संसद की कार्यकुशलता प्रभावित हुई। आने वाले समय में यह देखना होगा कि दोनों पक्ष किस तरह से संसद में अपनी रणनीतियों को आगे बढ़ाते हैं और क्या वे आगामी सत्रों में एकजुट होकर देशहित में काम करेंगे।