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संभल में प्राचीन कार्तिकेय मंदिर की कार्बन डेटिंग, ASI का पांच तीर्थ स्थलों और 19 कूपों का निरीक्षण

संभल
  • By Kanhwizz Times
  • Reported By: Kanwhizz Times
  • Updated: December 20, 2024

कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित प्राचीन कार्तिकेय मंदिर को लेकर विवाद गहरा गया है, इस बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने गुपचुप तरीके से इस मंदिर की कार्बन डेटिंग प्रक्रिया पूरी की है। ASI ने इस प्रक्रिया के लिए एक चार सदस्यीय विशेषज्ञ टीम का गठन किया था, ताकि मंदिर और आसपास के क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व और पुरातात्त्विक साक्ष्य जुटाए जा सकें।

टीम द्वारा निरीक्षण किए गए स्थान:

ASI ने न केवल कार्तिकेय मंदिर की कार्बन डेटिंग की, बल्कि संभल जिले में स्थित पाँच तीर्थ स्थलों और 19 प्राचीन कूपों का भी गहन निरीक्षण किया। इन स्थानों का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है, और इनका अध्ययन आगामी इतिहास लेखन और पुरातात्त्विक अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

इन स्थानों का निरीक्षण किया गया:

  1. भद्रकाश्रम
  2. स्वर्गदीप
  3. चक्रपाणि
  4. प्राचीन तीर्थ श्मशान मंदिर

इसके अलावा, टीम ने 19 प्राचीन कूपों की स्थिति और ऐतिहासिक महत्व का भी गहन अध्ययन किया। इन कूपों का निरीक्षण इस क्षेत्र की प्राचीन जल प्रबंधन प्रणाली को समझने में मदद कर सकता है।

कार्बन डेटिंग और प्रशासन का रवैया:

ASI ने इस महत्वपूर्ण निरीक्षण और कार्बन डेटिंग प्रक्रिया को मीडिया कवरेज से दूर रखने की विशेष गुजारिश की थी, ताकि कोई भी बाहरी दबाव या अफवाह इस शोध पर असर न डाल सके। यह कदम इस बात को स्पष्ट करता है कि ASI ने अपने कार्य को पूरी निष्पक्षता और वैज्ञानिक तरीके से संपन्न किया।

संभल का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व:

संभल का क्षेत्र प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है, और ASI की यह गतिविधि इस क्षेत्र के इतिहास में नए पहलुओं को उजागर करने की उम्मीद पैदा करती है। इस निरीक्षण से अब इस बात का पता चलने की संभावना है कि इन प्राचीन स्थलों की वास्तविक उम्र क्या है और उनका इतिहास क्या है, जो आगे चलकर इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संभल के इस प्राचीन मंदिर और तीर्थ स्थलों का निरीक्षण और कार्बन डेटिंग प्रक्रिया, भारत के इतिहास और पुरातत्व के नए तथ्यों को उजागर कर सकती है। इस पूरे अभियान को गुपचुप तरीके से चलाने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि वैज्ञानिक प्रक्रिया बिना किसी बाहरी प्रभाव के पूरी हो। आने वाले समय में इससे जुड़े और महत्वपूर्ण खुलासे हो सकते हैं, जो भारतीय पुरातात्त्विक धरोहर के संरक्षण और समझ में मदद करेंगे।

 

 

 

 

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