अशोक कुमार पाठक
गोण्डा:पुलिस प्रशासन का कार्य जनता की सुरक्षा और सहायता करना है,परंतु वर्तमान संदर्भ में देखें तो आज आए दिन बलात्कार चोरी,डकैती जैसी घटनाएं आम हो गई हैं।हर गली-मोहल्ले में ऐसी घटनाएं आए दिन हो जाती हैं,जबकि पुलिस को चौकन्ना रहने की आवश्यकता है,लेकिन घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है।ऐसे में जनता का पुलिस की निष्क्रि यता के कारण विश्वास खत्म होता जा रहा है। एक समय था जब व्यक्ति अपराध करने से पहले सोचता था,उसे पुलिस के नाम से भी डर लगता था,लेकिन आज वह भय खत्म हो चुका है।पुलिस के कुछ कर्मचारियों के निकम्मे होने की वजह से सारा प्रशासन बदनाम हो रहा और साख गिरने के लिए पुलिस स्वयं ही जिम्मेदार है।वही हमारे उत्तर प्रदेश की पुलिस अपनी शक्तियों को भूल चुकी है।वह सिर्फ नेताओं के इशारों पर चलने वाली कठपुतली के समान कार्य करने लगी है।इससे उसकी छवि दागदार होती जा रही है।जिस दिन उसको अपनी शक्ति का एहसास हो जाएगा,उस दिन वह नेताओं के इशारों पर नहीं नाचेंगे।इसके बावजूद यह सम झना होगा कि सभी पुलिसवाले गलत नहीं होते कुछ लालची किस्म के लोग पूरे सिस्टम को ब र्बाद करने पर तुले हुए हैं। इनकी पहचान कर इन्हें बाहर करना जरूरी है, तब कहीं जाकर पुलिस की छवि में कुछ सुधार आ सकता है।
जिले में बेखौफ हैं अपराधी
उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले में आए दिन लगा ताऱ हों रही वारदात से साफ है कि अपराधियों में पुलिस का कोई खौफ है ही नहीं।यदि पुलिस लगातार सक्रियता दिखाए तो अपराध कम हो सकते हैं।गोण्डा पुलिस केवल सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं की चापलूसी करती है।चापलूस व्य क्ति सत्य को दरकिनार करता है,उसे केवल अपना ही स्वार्थ दिखाई देता है।इसके लिए वह किसी भी हद तक गिर सकता है।आये दिन हम देखते हैं कि किस प्रकार से पुलिस की नाक के नीचे हत्या,लूट और बलात्कार जैसी घटनाएं जिले में अंजाम दी जाती हैं।
यूपी पुलिस की कार्यशैली पर सवाल
उत्तर प्रदेश में पुलिस कि साख गिरने का मुख्य कारण स्वयं पुलिस की कार्यशैली है।पुलिस का किसी भी शिकायत पर ढुलमुल रवैया अपनाना उसकी कार्य के प्रति नकारात्मकता को ही दर्शा ता है। इससे आमजन में पुलिस की मैली छवि बन गई है।चाहे थाना कटरा बाजार हों या फिर
थाना धानेपुर क्षेत्र में ब्लाइंड मर्डर केस हों का मामला हो या वर्तमान में हुई वारदातों को ही लें तो साफ तौर पर पुलिस की ढीली कार्यशैली स्वत: ही स्पष्ट हो जाती है। बहुत कम मामलों में पुलिस की तत्परता दिखती है। यही वजह है कि आज तक पुलिस पर आमजन विश्वास नहीं करता।पुलिस की साख निरंतर गिरती का रही है।
पैसा कमाना ही बन गया लक्ष्य
पुलिस के बारे में कहा गया हैं कि यह कुछ हद तक अपराधियों का संगठित गिरोह है और यह सही भी है। अधिकतर पुलिस वालों का ध्येय पैसा कमाना मात्र है। यही कारण हैं कि यहां बगैर रिश्वत कोई काम नही होता। अपराधियों को संरक्षण और आम आदमी को प्रताडि़त कर ना पुलिस का मुख्य काम हैं।अगर कोई पुलिस कर्मी ईमानदारी से काम करना भी चाहे तो नेता नहीं करने देते।नेताओं में ही जब कर्तव्यपरयण ता और ईमानदारी का अभाव हैं, तो सरकारी कर्मचारियों से क्या आशा की जा सकती है। अधिकतर पुलिसवाले जन कार्यों मे रुचि लेने की बजाय पैसा कमाने और नेताओं की जी हुजूरी मे लगे हैं। यही कारण हैं कि पुलिस की साख निरन्तर गिर रही हैं।
कुछ पुलिस कर्मचारियों के कारण बिगड़ी छवि
जिले में पुलिस विभाग में बहुत सारे ईमानदार अफसर व कर्मचारी हैं,लेकिन कुछ अफसरों व कर्मचारियों की वजह से पूरे विभाग की छवि बिगड़ रही है।रसूखदार पुलिस पर दबाव बनाते हैं।इससे पीड़ित और आमजन हताश होते हैं। नेता पुलिस को अपनी सुविधानुसार मोहरा ब नाने से नहीं चूकते। जघन्य अपराधों में गलत अनुसंधान, कानूनी दांवपेचों की लंबी प्रक्रिया पुलिस की साख पर विपरीत प्रभाव डालती है।
जिले में आए दिन ऐसी घटनाएं होती हैं,जिसमें पुलिस पीड़ित स्त्री का साथ ना देते हुए आरोपि यों का साथ देती नजर आती है। फिर किससे राहत की उम्मीद रखें..? पीडि़त महिलाएं न्याय ना मिल पाने पर आत्महत्या का रास्ता तक अ पनाती है।
जिले में क्यों बढ़ रहे हैं अपराध
केवल पुलिस पर सवाल उठाना ही काफी नहीं होगा।हमें उन कारणों को भी पहचानना होगा, जिसके कारण लगातार लोगों में आपराधिक प्रवृति बढ़ रही है।इन कारणों में मुख्य रूप से है- वेब सीरिज और अश्लील फिल्में। राजनीति के चलते पुलिस को खुल कर काम करने ही नहीं दिया जाता। यही नही गोण्डा पुलिस की गिरती साख के पीछे बहुत बड़ा हाथ राजनेता ओं अपराधियों और पुलिस प्रशासन के बीच गठजोड़ का है, जो वोहरा कमेटी की रिपोर्ट में भी जाहिर हुआ।आज पुलिस प्रशासन राजनी तिक आकाओं की अंगुलियों पर चलने वाली कठपुतली प्रतीत होती है, जो अपने ध्येय वाक्य 'अपराधियों में डर,आमजन में विश्वास से विमु ख होती दिख रही है।पुलिस प्रशासन को जन ता के बीच खोए विश्वास को पुन: प्राप्त करना होगा।
रिपोर्ट लिखवाने से भी कतराते हैं पीडि़त
गोण्डा पुलिस की कार्यप्रणाली और तौर तरीकों से उसकी साख में भारी गिरावट आई है। आम जन थानों में जाकर रिपोर्ट लिखवाने से कतरा ते हैं।पुलिसकर्मियों की भाषा शालीन और शिष्ट नहीं होती है।आजादी के अठहत्तर से अधिक सालों के बाद भी हिंदुस्तानी गोण्डा पुलिस का व्यवहार अंग्रेजी हुकूमत के समय की तरह है। कई पुलिस थानों मे पुलिसकर्मियों की कम संख्या काम का दबाव बढ़़ा देती है,जिससे वे चिढ़चिढ़े हो जाते हैं।पुलिस की कार्य पद्धति में आमूल परिवर्तन होना जरूरी है, तभी पुलिस अपनी गिरती साख को संभाल पाएगी।
