गोण्डा: संगठन में शक्ति है,सब मानते हैं "पर संगठित होकर कोई नहीं रहना चाहता है जहां देखो वहीं कुमति, सुमित तो स्वप्न सरीखे हो गई है हम सब संगठन सूत्र में आबद्ध हो।संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनाँसि जानताम्।देवा भागं यथा पूर्व सञ्जानाना उपासते(ऋग्वेद) में साफ साफ लिखा हुआ है,पर अनुसरण करें,,अपवाद स्वरू प कोई ही कर रहा है।बाकी तो देश और दुनि या का हाल देख ही रहे हों।दुरौनी चौराहे पर सं चालित पाठशाला में राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी अनामिका बहिन ने शुक्रवार को कहा कि हे मनुष्यों साथ-साथ मिलकर चलो,मिलकर बोलो,तुम्हारी मानसिक भावनायें समान हों, जैसे पहले देवता समान ज्ञान रखकर कार्य करते थे वैसे ही तुम भी करो।
ऋग्वेद वेद मंत्र में मानव जाति के लिए संगठन बद्ध रहने का आदेश दिया गया है।वैदिक ऋचाओं में कई स्थानों पर परस्पर संगठन बद्ध रहने पर जोर दिया गया है।इससे सिद्ध होता है कि आज से बहुत समय पूर्व वैदिक-काल में ही आर्य जाति ने संगठन का महत्व जान लिया था।यही कारण था कि उनके संगठन बद्ध रहने से देश उन्नति, विकास की ओर बढ़ रहा था।धन धान्य सम्पन्न ता सुख,शान्ति,ज्ञान-विज्ञान,कला कौशल आदि में भारतीय जनता बढ़ी-चढ़ी थी।संगठन में महा न शक्ति होती है।सूत का एक धागा आसानी से तोड़ा जा सकता है पर जब इस तरह के अनेकों धागे बटकर मोटा रस्सा बना दिया जाता है तो वह नहीं तोड़ा जाता।इसी प्रकार झाडू की सींकें बिखर जाएं तो उसका कोई मूल्य नहीं रह जा ता है प्रकृति भी सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ को संग ठन-बद्ध रहने की सूक्ष्म प्रेरणा देती है।
जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण पशु-पक्षियों में तथा इतर प्रा णियों में देखा जा सकता है मधु-मक्खियों, बरें छत्ते बाँध कर संगठित रूप से रहती हैं।यदि वे तितर बितर हो जायँ तो उनकी क्या शक्ति रह जाती है।वह अपने संगठन बल से ही बड़े-बड़े शक्तिशाली मनुष्यों तथा जानवरों को परेशान कर देती हैं।चींटियां, हाथी, हिरण बन्दर आदि संगठनबद्ध सामूहिक रूप से रहते हैं इसमें प्रकृति की मूल प्रेरणा सन्निहित है।मानव जाति के लिए भी संगठनबद्ध रहना आवश्यक है।
क्योंकि संगठन में अनन्त बल,सामर्थ्य, परिश्रम आदि निहित है।उदाहरणार्थ सनातन धर्म के इतिहास को देखने से पता चलता है जब तक पूर्वकाल में यह संगठनबद्ध रही तो आश्चर्यज नक कार्य किए।विश्व में अपना प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ।ज्ञान-विज्ञान में देश सबसे बढ़ा-चढ़ा रहा।सम्पन्नता ऐश्वर्य शक्ति सामर्थ्य आदि में भी किसी प्रकार कम न था।खेद है कि कालान्तर में वही हिन्दू जाति अपनी फूट के कारण निर न्तर पतन की ओर चली गई और उसे दुनिया की क्रूरता, अत्याचार,और आक्रमणों का शि कार होना पड़ा।इसकी संस्कृति एवं वैभव सं पन्नता, ज्ञान-विज्ञान आदि को आक्रमणकारियों ने कुचल दिया।विदेशी आक्रमणकारियों ने हि न्दू जाति पर इसके असंगठन के कारण जो अ त्याचार किये उसकी याद से रोमाँच हो उठता है।
उत्तरी पश्चिमी सीमा पर तातारियों के हमले, महमूद गजनवी और गौर के आक्रमण, नादिर शाह द्वारा दिल्ली का कत्लेआम, मुगल, शासक का दमन चक्र और बर्बरतापूर्वक व्यवहार ने हिन्दू संस्कृति, धर्म परम्पराओं को कुचल दिया, ब्रिटिश शासन की तानाशाही, स्वराज्य माँग के बदले में जेल, फाँसी और मशीनगनों की बौछा र।इन सबका मूल कारण भारतीयों की संगठन शून्यता ही थी।जिसका अन्त अभी तक भी न हीं हो पाया है।यदि हमें पुनः उस प्राचीन गौरव को प्राप्त करना है,अपने कदम प्रगति और वि कास की ओर अग्रसर करने हैं, इस विज्ञान के युग में,आध्यात्म को जीवन में समायोजित कर अपना अस्तित्व कायम रखना है,,तो 140 करो ड़ भारतीय जनता को संगठनबद्ध होकर चलना होगा।संगठन की शक्ति महान होती है। शरीर को सुव्यवस्थित रूप में चलाने के लिए इसके प्रत्येक अंग का सम्यक् कार्य करना आवश्यक है।यदि इसके अंगों का सहयोग और ताल मेल बिगड़ जाय तो शरीर का अस्तित्व नहीं रह सक ता है।ठीक यही बात किसी धर्म 'जाति, समाज, राष्ट्र पर लागू होती है।समस्त राष्ट्र,जाति एक श रीर होती है।इसके विभिन्न अंग सम्प्रदाय, वर्ण जाति आदि का एक संगठनबद्ध जीवन भी हो ना चाहिए।अर्थात् अनेकता में भी एकता होना आवश्यक है तभी जाकर इसका बल; सामर्थ्य एवं प्रतिभा का उपयोग प्रगति उत्थान एवं वि कास के लिए हो सकता है।परंतु यह तब सम्भ व हो सकता है जब मानव मानव में आत्मिक दृष्टि कोण होगा, दैहिक दृष्टि कोण से मानव मानव बंटते रहेंगे और सामाजिक परिवारिक कलह-क्लेश कभी खत्म नहीं होगा। इसलिए कम-से-कम एक घण्टे का समय अपने खुद के निकालकर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय संस्थान में प्रमात्म पद्धति शिक्षा लीजिए और राजयोग का अभ्यास करिए, जिससे दैवी दुनिया में जन्म प्राप्त करने के योग्य बन जाओगे, सभी दुःख मिट जायेंगे।
