कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव 2024 के लिए महागठबंधन और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। जहां एक तरफ बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत "साइलेंट वोटरों" को लुभाने के लिए आक्रामक तरीके से प्रचार शुरू किया है, वहीं महागठबंधन चुनावी मैदान में अपेक्षाकृत चुप्प रहा है। बीजेपी की यह रणनीति महागठबंधन के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है, क्योंकि 'साइलेंट वोटर' ऐसे मतदाता होते हैं जो चुनाव के दौरान सार्वजनिक रूप से अपनी पसंद जाहिर नहीं करते, लेकिन वे चुनावी परिणामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
साइलेंट वोटर: बीजेपी की ताकत?
बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि बिहार जैसे राज्य में 'साइलेंट वोटर' की संख्या बढ़ रही है। ये वोटर आमतौर पर किसी पार्टी या नेता के प्रति न तो खुले तौर पर समर्थन व्यक्त करते हैं और न ही विरोध करते हैं। चुनाव के दिन उनका मतदान काफी निर्णायक होता है। बीजेपी ने इस वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए व्यापक प्रचार और रैलियों का आयोजन किया है, जिससे वे अपनी योजनाओं को 'नम्र तरीके से' पेश कर सकें। पार्टी ने खासकर रोजगार, विकास और सुशासन जैसे मुद्दों पर जोर दिया है, जो आमतौर पर साइलेंट वोटरों को प्रभावित करते हैं।
महागठबंधन की चुप्पी:
महागठबंधन, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और अन्य छोटे दल शामिल हैं, चुनाव प्रचार में अपेक्षाकृत चुप्पा नजर आ रहा है। जबकि बीजेपी अपने प्रचार में पूरी ताकत लगा रही है, महागठबंधन के नेता जनता के बीच अपनी उपस्थिति को सीमित कर रहे हैं। विशेष रूप से आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस के नेता इस समय ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। महागठबंधन की ओर से घोषणाएं तो हो रही हैं, लेकिन उसका प्रचार बीजेपी के मुकाबले उतना प्रभावशाली नहीं दिखाई दे रहा।
महागठबंधन की रणनीति:
महागठबंधन की चुप्पी का एक कारण यह भी हो सकता है कि वे चुनावी मैदान में ज्यादा आक्रामकता नहीं दिखाना चाहते। उनका मानना है कि चुनावी समीकरणों को लेकर वे पहले से ही मजबूत स्थिति में हैं। गठबंधन के नेता खासकर तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार ने गरीबों और किसानों के लिए कई योजनाओं का ऐलान किया है, लेकिन प्रचार के स्तर पर इसे बीजेपी के मुकाबले ज्यादा जोर से पेश नहीं किया गया।
बीजेपी का 'सोशल मीडिया' और 'मीडिया' पर जोर:
बीजेपी ने सोशल मीडिया और पारंपरिक मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया है। भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के साथ-साथ स्थानीय नेता भी घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं और शहरी, ग्रामीण, युवा और महिला वर्ग के बीच अपनी पकड़ बनाने के लिए रणनीतियों पर काम कर रहे हैं। इस सबका उद्देश्य साइलेंट वोटरों को अपने पक्ष में करना है, जो चुनाव के दिन अपने फैसले लेते हैं।
आखिरकार, क्या असर होगा चुनाव पर?
महागठबंधन की चुप्पी इस बार उसे कितना भारी पड़ेगा, यह कहना मुश्किल है, लेकिन बीजेपी ने पूरी कोशिश की है कि वह हर वर्ग और हर इलाके के साइलेंट वोटरों से संपर्क बनाए। इन वोटरों को आकर्षित करने के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, जबकि महागठबंधन को अपने प्रचार में तेज़ी लानी होगी ताकि वह बीजेपी के साइलेंट अभियान से मुकाबला कर सके। बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की 'साइलेंट वोटरों' को लुभाने की रणनीति एक बड़ी चुनौती बन सकती है। महागठबंधन को अब अपनी रणनीतियों को तेज़ी से लागू करने की जरूरत है, ताकि वह बीजेपी के आक्रामक प्रचार का सही तरीके से मुकाबला कर सके। चुनाव परिणामों में साइलेंट वोटरों की भूमिका अहम हो सकती है, और यह तय करेगा कि बिहार की सत्ता किसके हाथों में जाती है।