कैनवीज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो रेट को स्थिर रखने का निर्णय लिया है। रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है, और इसके आधार पर बैंकों द्वारा ग्राहकों को दी जाने वाली ब्याज दरें तय होती हैं। यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार और मुद्रास्फीति नियंत्रण की दिशा में महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति में सुधार और विकास की गति बनाए रखने के लिए RBI को संतुलित कदम उठाने की आवश्यकता थी।
रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं
आरबीआई ने रेपो रेट को 6.5% पर स्थिर रखा है, जो पिछले कुछ महीनों से यही स्तर बना हुआ है। इससे पहले, आरबीआई ने 2022 और 2023 के दौरान कई बार रेपो रेट में वृद्धि की थी, ताकि मुद्रास्फीति को काबू में किया जा सके। हालांकि, वर्तमान निर्णय इस बात का संकेत है कि आरबीआई ने अब मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने के बाद आर्थिक विकास के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया है।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मौजूदा दरों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में विकास को बनाए रखना है, जबकि मुद्रास्फीति को भी नियंत्रण में रखा जा सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में कोई आपातकालीन आवश्यकता उत्पन्न होती है, तो मौद्रिक नीति को फिर से समायोजित किया जा सकता है।
आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के आंकड़े
भारत की अर्थव्यवस्था इस समय एक सुधारात्मक दौर से गुजर रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2024-25 में लगभग 6.3% रहने का अनुमान है, जो वैश्विक मंदी के बावजूद एक सशक्त संकेत है। हालांकि, मुद्रास्फीति अभी भी 4-6% के दायरे में बनी हुई है, जो आरबीआई के लक्ष्य के भीतर है। इस समय, भारत में मुद्रास्फीति मुख्य रूप से खाद्य वस्तुओं, ईंधन और कृषि उत्पादों की कीमतों में वृद्धि के कारण प्रभावित हो रही है। हालांकि, इन क्षेत्रों में कुछ राहत मिली है, जिससे आरबीआई को मुद्रास्फीति नियंत्रण में रखने में मदद मिली है।
आरबीआई ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं:
1. बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी (तरलता) का समर्थन:
आरबीआई ने बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त लिक्विडिटी बनाए रखने के लिए ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMOs) जारी करने का फैसला लिया है। इसका उद्देश्य वित्तीय बाजारों में तरलता बनाए रखना और बैंकों को उधारी के लिए पर्याप्त पैसा उपलब्ध कराना है, ताकि वे अपनी गतिविधियों को बढ़ा सकें और अधिक कर्ज दे सकें।
2. ब्याज दरों में स्थिरता:
रेपो रेट को स्थिर रखने का निर्णय इसका संकेत है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कोई तेज बढ़ोतरी करने से बचना चाहता है। इससे कर्ज की लागत पर दबाव कम होगा और यह छोटे एवं मंझले व्यापारियों, घर खरीदारों और अन्य उपभोक्ताओं के लिए सकारात्मक संकेत होगा।
3. वित्तीय प्रणाली में सुधार:
आरबीआई ने वित्तीय प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए बैंकों के लिए नए नियामक दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। इनमें छोटे बैंकों के लिए ऋण देने के नियमों में सुधार और वित्तीय संपत्ति की निगरानी की प्रक्रिया में बदलाव शामिल हैं। इन उपायों से बैंकों की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी और इससे अर्थव्यवस्था में तरलता का प्रवाह बढ़ेगा।
4. मुद्रास्फीति लक्ष्यों को पूरा करना:
आरबीआई का प्राथमिक उद्देश्य मुद्रास्फीति को 4% के करीब बनाए रखना है, जो भारतीय उपभोक्ताओं के लिए स्थिर मूल्य स्तर सुनिश्चित करेगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आरबीआई ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के आधार पर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की नीति को लागू किया है।
आरबीआई के गवर्नर ने यह भी कहा कि बैंक के लिए मौद्रिक नीति को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया लचीली होगी। यानी भविष्य में, जब अर्थव्यवस्था में अस्थिरता या कोई नकारात्मक विकास होगा, तो केंद्रीय बैंक अपनी नीतियों को फिर से समायोजित करने के लिए तैयार रहेगा। उन्होंने कहा कि यह निर्णय समग्र आर्थिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए लिया गया है और भविष्य में आवश्यकता अनुसार इसे बदलने का विकल्प खुलेगा।
व्यापार और निवेश पर प्रभाव
रेपो रेट को स्थिर रखने का प्रभाव व्यवसायों और निवेशकों पर भी पड़ेगा। कर्ज की लागत बढ़ने से पहले के मुकाबले अब व्यवसायों को नए निवेश के लिए ज्यादा लागत का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिससे उनके लिए विस्तार योजनाओं को लागू करना आसान हो जाएगा। साथ ही, इस फैसले का असर शेयर बाजारों पर भी देखा जा सकता है। जब आरबीआई ब्याज दरों को स्थिर रखता है, तो निवेशक इसे सकारात्मक संकेत के रूप में लेते हैं, क्योंकि इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में विकास को बढ़ावा देने के लिए मौद्रिक नीति समर्थक रहेगी। आरबीआई का यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने और मुद्रास्फीति को काबू में रखने के उद्देश्य से लिया गया है। रेपो रेट को स्थिर रखने से बाजार में विश्वास बना रहेगा, और भारतीय उपभोक्ताओं और व्यवसायों को अपेक्षाकृत स्थिर वित्तीय माहौल मिलेगा। हालांकि, आने वाले महीनों में आर्थिक संकेतों और वैश्विक घटनाक्रमों के आधार पर आरबीआई अपनी नीति में बदलाव कर सकता है।