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निजी स्कूलों का सालाना लूट समारोह,कैनविज टाइम्स ने चैक की हकीकत..की सच्चाई..

निजी स्कूलों का सालाना लूट समारोह,कैनविज टाइम्स ने चैक की हकीकत..की सच्चाई..
  • By Kanhwizz Times
  • Reported By: Kanwhiz Times
  • Updated: April 17, 2025

कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क। अप्रैल का महीना,बच्चों के मां-बाप के जेब कटने का महीना होता है आमतौर पर जब कोई आपकी जेब काटता है तो आप जोऱ-जोर से चोर-चोर चिल्लाते हैं, लेकिन अप्रैल के महीने में जब मां-बाप की जेब कटती है तो वो स्कूल-स्कूल चिल्लाते हैं,किसी जेबकतरे की शिकाय त आप पुलिस स्टेशन में कर सकते हैं,लेकिन जेब काटने वाले स्कूलों की आप कहीं शिकायत नहीं कर सकते हैं। बहुत मुमकिन है कि जेबकतरे को पुलिस पकड़कर जेल में भी डाल दे,आपका कुछ पैसा भी दिलवा दे,लेकिन स्कू लों पर कोई हाथ नहीं डालता है,क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों हैं..?  ऐसा इसलिए है कि मंत्री से लेकर अधिका री तक,नौकरी पेशा से लेकर व्यापारी तक,सभी के बच्चे किसी ना किसी निजी स्कूल में पढ़ते हैं।उनके बच्चों को प्रताड़ित ना किया जाए,उनके बच्चों को स्कूल से ना निकाल दिया जाए,उनके बच्चे के साथ भेदभाव ना शुरु कर दिया जाए,इस डर से सब चुप रहते हैं और चुप्पी ही स्कूली जेबकतरों की शक्ति है,वर्ष बदलते हैं लेकिन हालात नहीं बदले..फीस और किताबों के सेट के नाम पर लुटेरों के जज्बात भी नहीं बदले हैं।गोण्डा जिले में इस वर्ष स्कू लों में कॉपी-किताबों के पूरे सेट की कीमत, 40 प्रतिशत तक महंगी कर दी गई हैं।इसमें कॉपी-किताबें करीब 30 प्रतिशत तक महंगी हुई है.स्कूल ड्रेस और बैग वगैरह की कीमतों में 40 प्रतिशत का इज़ाफा किया गया है.।

 प्राइवेट कीमतें हर वर्ष बढ़ाई जाती हैं..
हालांकि प्राइवेट स्कूली शिक्षा की दुनिया में कुछ बातें यूनिवर्सल ट्रुथ है,जैसे महंगाई के नाम पर कॉपी किताबों की कीमतें हर वर्ष हद से ज्यादा बढ़ाई जाती हैं,स्कूलों में बच्चों को ये सिखाया जाता है कि पेड़ काटना नहीं चाहिए. नए पेड़ लगाने चाहिए,लेकिन यही स्कूल अपने यहां हर वर्ष बच्चों को नई क्लास के लिए नए कॉपी-किताबों का सेट खरीदने के लिए मजबूर करते हैं,पुरानी किताबों को एक तरह से अछूत घोषित कर दिया जाता है।

प्राइवेट स्कूली शिक्षा की बातें
मतलब ये है कि एक ही परिवार के अगर दो बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ रहे हों,तो स्कूल उन्हें किताबें शेयर करने की इजाज़त नहीं देता है,यानी सातवीं क्लास में पढ़ने वाली कोई बच्ची,आठवीं क्लास में पढ़ने वाली अपनी बड़ी बहन की किताबें इस्तेमाल नहीं कर सकती. उसको आठवीं की नई चमचमाती किताबें ही लेनी होंगी,और जैसा की हम कह रहे हैं कि प्राइवेट स्कूली शिक्षा की दुनिया में कुछ बातें यूनिवर्सल ट्रुथ है,उसमें से एक ये भी है कि किताबें छापने वाली कंपनियां और प्राइवेट स्कूलों में गहरे करीबी संबंध होते हैं,कई बार स्कूलों के ही अपने पब्लिशिंग  हाउस भी होते हैं।अलग-अलग मुद्दों पर सर्वे करने वाली संस्था लोकल  सर्किल ने प्राइवेट स्कूलों की फीस और कॉपी किताबों के सेट की कीमत बढ़ाने को लेकर कैनविज टाइम्स की टीम ने एक सर्वे किया है ये सर्वे जिले के अलग-अलग स्कूलों के हैं।जिसमें अभिभावकों से स्कूल के खर्च पर बात की गई.सर्वे में 66 प्रतिशत पुरुष और 34 प्रतिशत महिलाएं शामिल की गई थीं।बताना होता है. केव ल दो मिनट में किताबें हाथ में आ जाती हैं अभिभावक चाहकर भी अपनी पसंद की दुकान से कॉपी किताबें नहीं खरीद पाते हैं प्राइवेट स्कूल की एजुकेशन फिक्सिंग में शामिल दुकानदार इसीलिए मनचाही कीमत पर कॉपी, किताबें,स्टेशनरी और बाकी सामान बेचते हैं,और मां-बाप उन्हें खरीदने को मजबूर होते हैं,इस नेक्सयस को समझाने के लिए हमने एक क्रिएटिव  ग्राफ़िक्स बनाया है... इसके जरिए बच्चे भी बड़ी आसानी से समझ जाएंगे कि कैसे उनके मम्मी-पापा की जेब काटी जा रही है।प्राइवेट स्कूल, खास पब्लिशर की किताब खास जगह से खरीदनों को क्यों कहते हैं ये आप इस तरह से समझ सकते हैं कि जिन किताबों से बच्चों को ज्ञान मिलता है,..आरोप है उन्हीं किताबों की कीमत से प्राइवेट स्कूलों को कमीशन मिलती है।

 ई कॉपियां, नई किताबें..नई स्टेशनरी
ई कॉपियां, नई किताबें..नई स्टेशनरी से जितना प्यार बच्चों को होता है,उससे ज्यादा प्यार प्राइवेट स्कूलों, पब्लिशिंग हाउस और दुकानदारों को होता है. बच्चों को नई चीजें देखकर खुशी मिलती है...और बाकी सभी को उससे होने वाली कमाई देखकर. स्कूलों की मनमानी हर वर्ष ऐसे ही चलती है, बच्चो के मां-बाप मन मारकर रह जाते हैं और स्कूल्स को कुछ नहीं कह पाते हैं।स्थिति ये है कि जो किताब बाजार में 100 रुपये की मिलती है,वही किताब स्कूलों की ओर से बताई गई दुकान पर दो सौ रुपये तक बेची जा रही है,कीमतों में दिख रहा ये अंतर, कमीशन का गहरा खेल है,जिसको समझना एक सामान्य मां-बाप के लिए मुश्किल है,मां-बाप जब अपने बच्चों के लिए कॉपी किताबें खरीदने के लिए जाते हैं,तो वो स्कूल की लिस्ट के हिसाब से निश्चित दुकान पर फिक्स्ड प्राइस पर सामान खरीदते हैं,उन्हें प्राइवेट स्कूलों की तरफ से इतना भी अधिकार नहीं दिया जाता है कि वो दूसरी दुकान से किताबें खरीद सकें हमने इस मुद्दे पर कुछ ऐसे अभिभा वकों से बात की,जो स्कूलों की मनमानी से परेशान हैं।


कई बार अभिभावकों को प्राइवेट स्कूलों की ओर से ऐसे संकेत दिए जाते हैं,कि अगर वो फीस या स्टेशनरी संबंधित दिशा निर्देशों का पालन नहीं कर सकते,तो वो अपने बच्चों का एडमिशन कहीं और करवा सकते हैं बस यही बात मा ता पिता के डर की वजह बनता है।उन्हें मालूम है कि प्राइ वेट स्कूल्स के संबंध बड़े-बड़े व्यापारी घरानों से भी होते हैं.ऐसे में अभिभावकों को स्कूलों की मनमानी के खिलाफ ना तो कार्रवाई की उम्मीद होती है,ना ही कड़े नियम कानून बनने की उम्मीद होती है।प्राइवेट स्कूल भी बेधड़क वही करते हैं जिससे उनकी कमाई हो सके देश में शिक्षा के हालात ऐसे है कि मां-बाप को अपने बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूल चुनने के लिए मजबूर किया जाता है,प्राइवेट स्कूल अभिभावकों की इसी मजबूरी का लाभ उठाते हैं।

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