कैनवीज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का वैश्विक प्रभाव और भी गहरा होता जा रहा है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर। पिछले साल फरवरी में शुरू हुए इस संघर्ष ने न केवल इन दो देशों की राजनीति और समाज को प्रभावित किया, बल्कि दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था को भी एक नई दिशा दी। यूरोप, एशिया और अन्य क्षेत्रों में बढ़ते ऊर्जा संकट और आर्थिक मंदी के कारण कई देशों के सामने गंभीर चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं।
ऊर्जा संकट की गहराई
रूस, जो यूरोप और अन्य देशों को प्राकृतिक गैस और तेल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, ने युद्ध के बाद अपने ऊर्जा आपूर्ति में कटौती कर दी है, जिससे वैश्विक ऊर्जा बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। यूरोप जैसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता देशों को रूस से ऊर्जा आपूर्ति में कमी का सामना करना पड़ा, जिससे इन देशों को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ी। इसके परिणामस्वरूप, प्राकृतिक गैस और तेल की कीमतों में भारी वृद्धि हुई, जिससे उपभोक्ताओं को भारी वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ा।
वैश्विक ऊर्जा कीमतों में उछाल
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक ऊर्जा कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। यूरोप में गैस और तेल की आपूर्ति बाधित होने के कारण, इन वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है। इसके अलावा, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भी बाधाएं आईं, जिससे औद्योगिक उत्पादन पर भी असर पड़ा। कच्चे तेल की कीमतें ऐतिहासिक उच्चतम स्तरों तक पहुंच गईं, और इसका असर परिवहन, उत्पादन और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर भी पड़ा। भारत और चीन जैसे देशों ने ऊर्जा की बढ़ती मांग के कारण भारी कीमतों का सामना किया, जिससे विकासशील देशों की आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ गई। भारत ने आयातित ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के कारण अपनी घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए, लेकिन यह भी एक चुनौती बनी रही।
खाद्य संकट
यूक्रेन, जो दुनिया के प्रमुख अनाज उत्पादक देशों में से एक है, युद्ध के कारण अपनी कृषि उत्पादन क्षमता खो बैठा है। गेहूं, मक्का, और सूरजमुखी तेल जैसे खाद्य पदार्थों के वैश्विक आपूर्ति में कमी आई है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य कीमतों में भी इज़ाफा हुआ। कई गरीब और विकासशील देशों में, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने सामाजिक और आर्थिक संकट उत्पन्न किया है। अफ्रीका और एशिया के कई देशों में खाद्य सुरक्षा का संकट गंभीर हो गया है, और सरकारों को इस मुद्दे से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर राहत कार्य करने पड़ रहे हैं।
वैश्विक मंदी और आर्थिक गिरावट
रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक आर्थिक विकास को भी प्रभावित किया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं ने वैश्विक विकास दर के अनुमान को घटा दिया है। उच्च ऊर्जा कीमतें, आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट और खाद्य संकट ने आर्थिक स्थिरता को कमजोर किया है। इससे विकासशील और विकसित देशों दोनों को ही मंदी और बढ़ती महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। विशेष रूप से यूरोपीय देशों में महंगाई दर कई दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। अमेरिका जैसे देश भी मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं और फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी के निर्णय से वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ी है।
रूस की आर्थिक स्थिति
रूस के लिए भी यह युद्ध एक बड़ी आर्थिक चुनौती साबित हो रहा है। पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के कारण रूस की मुद्रा रूबल गिर गई है और विदेशी निवेश में भारी कमी आई है। रूस को अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए कड़े उपायों की आवश्यकता है, और इसके परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में संकट उत्पन्न हुआ है। हालांकि रूस ने अपने ऊर्जा निर्यात से कुछ आर्थिक लाभ प्राप्त किया है, फिर भी युद्ध और प्रतिबंधों के कारण उसे दीर्घकालिक आर्थिक नुकसान हो सकता है।
युद्ध के दीर्घकालिक प्रभाव
रूस-यूक्रेन युद्ध के दीर्घकालिक प्रभाव अभी से महसूस होने लगे हैं और आने वाले वर्षों में यह और अधिक गहरा हो सकता है। वैश्विक ऊर्जा बाजार में अस्थिरता, खाद्य संकट, और आर्थिक मंदी जैसे मुद्दे 2024 और उसके बाद भी प्रमुख चिंता के विषय बने रहेंगे। इसके अलावा, युद्ध के कारण मानवाधिकारों, शरणार्थियों और विस्थापित लोगों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जो सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है। कुल मिलाकर, रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक स्तर पर ऊर्जा संकट, आर्थिक गिरावट और खाद्य सुरक्षा के गंभीर मुद्दों को जन्म दिया है, जिनका समाधान आने वाले समय में वैश्विक सहयोग और रणनीतिक निर्णयों पर निर्भर करेगा।