कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई एक महत्वपूर्ण टिप्पणी पर अब देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा भेजे गए लंबित विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय ले लेना चाहिए। इसी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए उपराष्ट्रपति ने इसे लोकतंत्र के सिद्धांतों के विरुद्ध बताया।
धनखड़ ने कहा, "भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कभी कल्पना नहीं की थी, जिसमें न्यायाधीश कानून बनाएं, कार्यपालिका का कार्य करें और ‘सुपर संसद’ की तरह कार्य करें।" उन्होंने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि न्यायपालिका को अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए और विधायिका तथा कार्यपालिका के क्षेत्र में दखल देना भारत के लोकतांत्रिक संतुलन के लिए उचित नहीं है।
न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका की बहस फिर गर्म
धनखड़ का बयान ऐसे समय में आया है जब विधेयकों पर राज्यपालों की ओर से हो रही देरी को लेकर कई राज्यों ने चिंता जताई है, और सुप्रीम कोर्ट ने इसी संदर्भ में राष्ट्रपति की भूमिका पर सुझाव दिया था। हालांकि कोर्ट की टिप्पणी सलाह के रूप में थी, लेकिन उस पर उपराष्ट्रपति की यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि संवैधानिक संस्थाओं के बीच संतुलन को लेकर नई बहस एक बार फिर तेज हो गई है।