कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। बिहार की नई विधानसभा का जातीय समीकरण हाल के चुनावों में महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बना हुआ है। बिहार में विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद, यह देखा गया है कि हर चौथा विधायक सवर्ण वर्ग से है। इसका मतलब है कि विधानसभा में सवर्ण समुदाय की संख्या बढ़ी है, जबकि अन्य जाति समूहों के प्रतिनिधित्व में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं।
बिहार में जातीय समीकरण का राजनीतिक प्रभाव बहुत गहरा होता है। सवर्ण, ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), दलित और मुस्लिम वोट बैंक के बीच टकराव और गठजोड़ अक्सर चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं। बिहार की राजनीति में जाति आधारित समीकरण अक्सर सत्ता की धारा को निर्धारित करते हैं। ऐसे में, सवर्ण वर्ग की बढ़ी हुई उपस्थिति को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों और समाज के वर्गों में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं। सवर्ण वर्ग के बढ़ते प्रतिनिधित्व का मतलब यह हो सकता है कि अब बिहार विधानसभा में उनके मुद्दों और हितों पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही अन्य जातीय समूहों की प्रतिक्रिया भी अहम होगी। ऐसे समीकरण में राजनीतिक दलों को विभिन्न जाति समूहों को संतुलित करने की चुनौती भी होती है।