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टेम्पल जूलरी: सदियों पुरानी आस्था, कला और कारीगरी का चमकता संगम, आज भी फैशन जगत की शान

नई दिल्ली
  • By Kanhwizz Times
  • Reported By: Kritika pandey
  • Updated: November 29, 2025

कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।

भारत को यूं ही मंदिरों की भूमि नहीं कहा जाता। यहां के मंदिर न केवल आस्था के केंद्र हैं, बल्कि अद्भुत वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के जीवित उदाहरण भी हैं। इन्हीं प्राचीन मंदिरों से प्रेरणा लेकर जन्मी टेम्पल जूलरी आज भी अपने दिव्य स्वरूप और शास्त्रीय आकर्षण के कारण फैशन जगत में विशेष स्थान बनाए हुए है। टेम्पल जूलरी की शुरुआत उस समय हुई जब आभूषण केवल देवी-देवताओं को सजाने के उद्देश्य से बनाए जाते थे। इसी कारण इसे प्रारंभ में ‘ऑर्नामेंट ऑफ गॉड्स’ कहा गया। इस परंपरा का सबसे पुराना साक्ष्य चोल साम्राज्य के राजराज चोल प्रथम (985–1014 ई.) के शासन काल में मिलता है। उनके द्वारा बनवाए गए बृहदेश्वर मंदिर में देव प्रतिमाओं को भारी, कीमती सोने के आभूषणों से सजाया जाता था।समय बीतने के साथ राजा-रानियों, सामंतों और सम्पन्न भक्तों ने भी मंदिरों में चढ़ावे के रूप में कीमती गहनों की परंपरा को आगे बढ़ाया। तमिलनाडु और केरल के कारीगरों ने पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला को संजोए रखा। आज यही शिल्पकार पारंपरिक से लेकर आधुनिक डिजाइनों तक हर तरह की टेम्पल जूलरी तैयार कर रहे हैं। इस जूलरी की खासियत इसकी बारीक नक्काशी, देवी-देवताओं की आकृतियां, मोर और कमल जैसे शुभ प्रतीक और सोने की भारी कारीगरी में छिपी है। आधुनिक दौर में यह रूबी, एमराल्ड, डायमंड और मोतियों से सजे नए रूपों में भी खूब पसंद की जा रही है। हरम, नक्शी जूलरी, वंकी आर्मलेट, भारी नेकलेस और झुमके सभी आज भी बेहद लोकप्रिय हैं। पारंपरिक नृत्य, शादी-ब्याह और खास आयोजनों में टेम्पल जूलरी अपनी दिव्य चमक के साथ भारतीय संस्कृति की गौरवशाली विरासत को जीवंत करती है।

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