कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।
भारतीय सिनेमा के इतिहास में जब भी किसी ऐसी नायिका की बात होगी, जिसने समाज की बंदिशों को चुनौती दी, तो जुबैदा बेगम का नाम सबसे पहले आएगा। 1931 में जब निर्देशक अर्देशिर ईरानी ने भारत की पहली टॉकी फिल्म आलम आरा बनाई, तब उसकी नायिका बनीं जुबैदा सिनेमा की पहली आवाज़। राजघराने में जन्मी जुबैदा का सफर आसान नहीं था। उनका जन्म 1911 में ब्रिटिश इंडिया के सूरत में नवाब सिधि मोहम्मद युकुत खान तृतीय और बेगम फातम बेगम के घर हुआ था। पर्दा प्रथा, परंपरा और पाबंदियों में पली-बढ़ीं जुबैदा ने जब अभिनय को करियर के रूप में चुना, तब उन्होंने न केवल अपने परिवार बल्कि पूरे समाज की सोच को चुनौती दी। जुबैदा मूक फिल्मों में भी सक्रिय थीं, लेकिन आलम आरा में उनके बोलते किरदार ने उन्हें अमर कर दिया। उनकी आवाज़ पहली बार बड़े पर्दे पर गूंजी और इसके साथ ही भारतीय सिनेमा का मूक युग समाप्त हो गया। उन्होंने साबित किया कि एक महिला अपनी पहचान समाज की सीमाओं से परे जाकर भी बना सकती है। जुबैदा सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, वह एक प्रतीक थीं । उस बदलाव का, जिसने भारतीय महिलाओं के लिए सिनेमा में एक नया मार्ग खोला। उनका साहस और संघर्ष आज भी कई कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।