कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।
बीते कई वर्षों से देश के किसानों को भारी वर्षा होने से नुकसान होता रहा है। इससे वह आर्थिक संकट का सामना करते रहे हैं। वैसे तो भाजपा की सरकार वर्ष 2014 में बनी थी और सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत 18 फरवरी, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई थी लेकिन अधिकतर किसान इसके प्रति जागरूक नहीं थे इसका फायदा नही ले पा रहे थे और इसके अलावा जिन्होनें यह योजना ले भी रखी थी तो वह किस तरह इसका फायदा लें वह इसके प्रति जागरूक नही थे। इस वर्ष 29 जून से किसान पीएम फसल बीमा योजना के लिए अभियान चलाया गया। इसका लाखों किसानों का सीधे तौर पर फायदा भी मिला।
देश के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है लेकिन इस वर्ष किसान पीएम फसल बीमा योजना पर अधिक जोर दिया गया। इस योजना के जरिए हाल ही में हुई भारी वर्षा के दौरान फसल बर्बाद होने पर उन्हें आर्थिक मदद मिली। इसके लिए जिन किसानों ने पीएम फसल बीमा योजना ली हुई थी उनको सीधा लाभ मिला। जिसका भी नुकसान हुआ उसे केंद्र सरकार की ओर से भरपाई की मिली। अधिकतर किसान तो सिर्फ यह समझते हैं कि इस बीमा के तहत केवल बारिश से बर्बाद होने वाली फसल के लिए मुआवजा मिलता है लेकिन बता दें कि पीएम फसल बीमा योजना के तहत बे-मौसम बारिश,फसलों को सूखा, आंधी, तूफान, बाढ़ आदि जैसे जोखिम से सुरक्षा मिलती है। इस योजना का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान की स्थिति में किसानों को किफायती दर पर इंश्योरेंस कवर देना है। अब तक करीब 36 करोड़ से ज्यादा किसानों को इस योजना का लाभ मिला है। 18 फरवरी 2025 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नौ साल पूरे हो गए। योजना को तो बहुत समय हो चुका लेकिन इसके लिए किसान बहुत धीरे जागरूक हुआ लेकिन अब स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में हैं। देश में किसानों को लेकर हमेशा बड़े स्तर पर राजनीति हो रही है। विपक्ष हमेशा उनकी असंतुष्टि को लेकर सभी पहलुओं को उजागर करता है। दूसरी ओर सत्ता में बैठी सरकार किसानों के हित की बात करती है लेकिन इन दोनों के बीच हम एक चीज भूल जाते हैं कि सरकार कोई भी हो वह अन्नदाता के साथ अन्याय नहीं करना चाहती। किसानों से जुड़े मुद्दे पर कुछ लोग गलत तरह की राजनीति करते हैं जिससे समाज में एक गलत संदेश जाता है। लेकिन हमारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि हम किसी भी स्थिति में किसानों पर राजनीति न करते हुए उन्हें योजनाओं के प्रति जागरूक किया करें। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि 1995 से 2014 के बीच 296438 किसानों ने आत्महत्या की थी व 2014 से 2022 के बीच नौ वर्षों में यह संख्या 100474 थी। इन आंकड़ों से यह तो पता चलता है कि इजाफा तो हुआ है लेकिन समस्या का अभी पूरी तरह निदान नहीं हुआ है लेकिन धीरे-धीरे जागरुकता से अन्नदाता को संपन्नता मिलने की शुरुआत हो चुकी है लेकिन इसकी रफ्तार को तेजी से बढ़ाना होगा।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसका मतलब है कि भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का एक महत्वपूर्ण स्थान है और अधिकांश आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करती है। भारत की लगभग तीन तिहाई से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि और संबंधित गतिविधियों पर निर्भर है। मतलब हम देश के उस व्यवसाय के प्रधान है जो लगभग पूरे देश के नागरिकों से जुड़ा है। वैसे तो आज भी हमारे पास कृषि करने के लिए बहुत भूमि है लेकिन बढ़ती आबादी से अब कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है। यदि महानगरों की बात करें तो बिल्डरों ने लगभग सारी जमीनों पर बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी। उदाहरण के तौर पर दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो दिल्ली से सटी सभी सीमाएं जैसे गाजियाबाद का राजनगर,हरियाणा का गुरुग्राम,नरेला व लोनी,यहां बीते दो दशकों में खेती की जमीनों पर इतनी इमारतें बन चुकी हैं कि यहां सारी खेती व खाली जमीन खत्म हो चुकी। स्थिति यह है कि दिल्ली का मौसम भी इस वजह से प्रभावित होने लगा। किसानों की फसलें कई कारणों से बर्बाद हो जाती हैं जिनमें प्राकृतिक आपदाएं, कीटों और बीमारियों का प्रकोप, खराब बीज, और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। बेमौसम बारिश, सूखा, ओलावृष्टि, और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं फसलों को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं। उदाहरण के लिए, बेमौसम बारिश से गेहूं, चना और अन्य फसलें भीग सकती हैं जिससे वह खराब हो सकती हैं। फसलों पर कीटों और बीमारियों का हमला होने से भी फसलें बर्बाद हो सकती हैं। जैसे कि कीटों के कारण बीज अच्छी गुणवत्ता के नहीं होते या फसलें बर्बाद हो जाती हैं। इससे बचने के लिए खेतों में जलजमाव से बचने के लिए उचित जल निकासी प्रणाली का उपयोग करना चाहिए। फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए उचित उपाय करने चाहिए, जैसे कीटनाशकों का सही उपयोग। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कृषि प्रणाली का प्रयोग करना चाहिए। जैसे कि पानी का संरक्षण करना और सूखे प्रतिरोधी फसलों का उपयोग करना चाहिए। बहरहाल, किसानों को जागरूक करने व उनकी स्थिति को मजबूत करने के लिए हमारे सबका उद्देश्य एक ही होना चाहिए। जिस तरह की कुछ समय से उनके बीमा व अन्य सुविधाओं को लेकर सरकार ने अभियान चलाया और उससे किसानों को फायदा मिला। सरकार का यह अच्छा कदम है चूंकि योजनाएं तो बहुत हैं लेकिन किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। लेकिन यदि सभी लोग प्रयास करेंगे तो किसानों व अन्य योजनाओं के जरूरतमंदों को निश्चित तौर पर इसका फायदा मिलेगा।