कैनविज टाइम्स, धर्म डेस्क। वरुथिनी एकादशी, जो वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है, इस वर्ष 24 अप्रैल 2025, गुरुवार को पड़ रही है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होता है, जो मोक्ष और पापों के नाश के लिए इस व्रत का पालन करते हैं।
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पूजा विधि (Puja Vidhi)
1. स्नान और व्रत का संकल्प: एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
2. पूजा स्थल की तैयारी: एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. पुष्प और चंदन अर्पित करें: भगवान विष्णु को पीले रंग के पुष्प और माला अर्पित करें, साथ ही पीला चंदन लगाएं। 
4. भोग अर्पित करें: भगवान को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी) का भोग अर्पित करें।
5. दीपक और धूप जलाएं: घी का दीपक और धूप जलाएं।
6. मंत्र जाप और आरती: विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और भगवान विष्णु की विधिवत आरती करें।
7. रात्रि जागरण: रात में भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना करें और जागरण करें।
8. व्रत का पारण: द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें।
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भोग (Bhog)
भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अलावा, पंचामृत का भोग भी नारायण को अतिप्रिय होता है। पूजा के बाद सभी परिजनों और इष्ट मित्रों को प्रसाद का वितरण करें।
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मंत्र (Mantra)
पूजा के दौरान निम्न मंत्र का जाप करें:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
यह मंत्र भगवान विष्णु की उपासना में अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
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महत्व (Importance)
वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने और इस दिन श्रद्धा भाव से विष्णु पूजन करने से व्यक्ति को मोक्ष और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से सभी पापों से मुक्ति दिलाता है। यदि कोई व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु का पूजन माता लक्ष्मी समेत करता है तो यह उसके लिए विशेष रूप से फलदायी होता है।
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इस दिन का पूजन विशेष रूप से सभी पापों से मुक्ति दिलाता है। यदि कोई व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु का पूजन माता लक्ष्मी समेत करता है तो यह उसके लिए विशेष रूप से फलदायी होता है।
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से दु:खी व्यक्ति को सुख मिलते हैं और राजा के लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं। इस व्रत का फल सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोग दोनों में सुख पाता है और अंत समय में स्वर्ग जाता है।