कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने न्यायिक स्वतंत्रता और नियुक्तियों के मुद्दे पर ब्रिटेन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि सरकार ने 1993 तक जजों की नियुक्तियों में अंतिम निर्णय लिया और इस दौरान दो बार वरिष्ठतम न्यायाधीशों को नजरअंदाज किया गया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में जस्टिस सैयद जाफर इमाम और इंदिरा गांधी सरकार के दौरान जस्टिस हंस राज खन्ना को मुख्य न्यायाधीश पद से वंचित किए जाने की घटनाओं का जिक्र किया। गवई ने 2015 में रद्द किए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को न्यायिक स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना हो सकती है, लेकिन कार्यपालिका को प्राथमिकता देना स्वीकार्य नहीं।मुख्य न्यायाधीश ने जजों के रिटायरमेंट के बाद सरकारी पदों को स्वीकार करने या चुनाव लड़ने पर नैतिक चिंता भी जाहिर की। उन्होंने कहा कि इससे लोगों में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर संदेह पैदा होता है।