कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क।आज, 2 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल कानून (Places of Worship Act, 1991) को लेकर महत्वपूर्ण सुनवाई होने जा रही है। इस मामले में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल- मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एक याचिका दायर की है। ओवैसी की याचिका में पूजा स्थल कानून को चुनौती दी गई है, और उन्होंने इसके प्रावधानों को संविधान के खिलाफ बताया है।
पूजा स्थल कानून (Places of Worship Act, 1991)
पूजा स्थल कानून 1991 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य 15 अगस्त 1947 तक भारत में किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने से रोकना था। इस कानून के तहत, किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने की अनुमति नहीं है, यानी जिस स्वरूप में किसी पूजा स्थल का संचालन हुआ, उसे उसी रूप में बनाए रखना अनिवार्य है। इसके अलावा, यह कानून यह भी कहता है कि यदि कोई पूजा स्थल 1947 के बाद बदलने की कोशिश करेगा, तो उसे कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जाएगी।
ओवैसी की याचिका
ओवैसी ने अपनी याचिका में इस कानून को चुनौती दी है और कहा है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ है। उनका कहना है कि यह कानून न्याय के सिद्धांतों और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, क्योंकि यह किसी विशेष समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर प्रतिबंध डालता है। ओवैसी के अनुसार, इस कानून की वजह से कुछ धार्मिक स्थानों में न्याय की प्रक्रिया रोक दी गई है, जो संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के खिलाफ है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर इस कानून को चुनौती दी जाती है और इसे कमजोर किया जाता है, तो इससे धार्मिक स्थानों के ऐतिहासिक महत्व पर प्रभाव पड़ेगा और यह समाज में धार्मिक विवादों को और बढ़ावा दे सकता है। उनका यह भी कहना है कि कानून में कुछ संशोधन किए जाने चाहिए, ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके।
सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई में इस मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, अदालत इस कानून के प्रावधानों का परीक्षण करेगी और यह तय करेगी कि क्या यह संविधान और भारतीय समाज के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप है। अदालत इस बात पर भी विचार करेगी कि क्या यह कानून धार्मिक स्थानों के बदलते स्वरूप को प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है, या यह किसी खास धार्मिक समुदाय की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
यह सुनवाई भारतीय समाज में धार्मिक स्वतंत्रता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है, क्योंकि यह विवाद केवल पूजा स्थलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समाज में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सामंजस्य और सह-अस्तित्व के मुद्दे पर भी गहरा असर डाल सकता है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता की दिशा में महत्वपूर्ण होगा। अब देखना यह होगा कि क्या अदालत पूजा स्थल कानून में किसी प्रकार के संशोधन का आदेश देती है, या फिर इसे यथावत रखने का फैसला करती है। यह मामला न केवल धार्मिक मामलों से जुड़ा हुआ है, बल्कि भारतीय समाज के विविधताओं में सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश भी करेगा।