कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। उत्तराखंड ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने वाला पहला राज्य बनकर इतिहास रच दिया है। UCC, जो कि भारत में सभी नागरिकों के लिए समान व्यक्तिगत कानून की बात करता है, अब उत्तराखंड में लागू किया जाएगा। इससे पहले, भारत में विभिन्न समुदायों के लिए व्यक्तिगत कानून अलग-अलग होते थे, जैसे कि हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिम व्यक्तिगत कानून, और क्रिश्चियन विवाह अधिनियम आदि। UCC का उद्देश्य इन सभी कानूनों को समान बनाना है ताकि हर नागरिक को एक समान दर्जा प्राप्त हो।
उत्तराखंड का कदम: उत्तराखंड सरकार ने इस कदम से यह संदेश दिया है कि राज्य में धार्मिक या सांस्कृतिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए समान नियम लागू किए जाएंगे। राज्य सरकार ने UCC को लागू करने के लिए एक विधेयक पारित किया है, जिसे अब राष्ट्रपति की मंजूरी मिलनी बाकी है। उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है, जिसने UCC को अपनी नीति का हिस्सा बनाया है।
UCC के नियम और टाइमलाइन: उत्तराखंड में UCC लागू होने के बाद से, राज्य के सभी नागरिकों को एक समान व्यक्तिगत कानून के तहत अधिकार मिलेंगे। यह कानून विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार, उत्तराधिकार और अन्य नागरिक मामलों को नियंत्रित करेगा। राज्य सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी नागरिकों को उनके धर्म, जाति या समुदाय से ऊपर उठकर समान अधिकार मिलेंगे।
टाइमलाइन:
- 1 जनवरी 2025: उत्तराखंड विधानसभा में UCC विधेयक पारित हुआ।
- 15 फरवरी 2025: विधेयक राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
- 1 जुलाई 2025: UCC का पूर्ण रूप से क्रियान्वयन उत्तराखंड में होगा।
UCC के मुख्य बिंदु:
- विवाह और तलाक: सभी समुदायों के लिए समान विवाह और तलाक कानून लागू होंगे।
- संपत्ति के अधिकार: हर नागरिक को अपनी संपत्ति के लिए समान अधिकार मिलेंगे, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से संबंधित हो।
- उत्तराधिकार: संपत्ति के उत्तराधिकार के मामले में भी समान कानून लागू होंगे।
- न्याय की समानता: नागरिकों को समान न्याय मिल सकेगा, बिना किसी धर्म या जाति के भेदभाव के।
विपक्षी विचार: हालांकि, UCC के लागू होने से कई लोग खुश हैं, लेकिन विपक्षी दल और कुछ धार्मिक संगठनों ने इसे लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह हर समुदाय की अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डाल सकता है। कुछ का यह भी कहना है कि UCC को लागू करना संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ हो सकता है।