कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।
महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 में हुए बम धमाकों के केस में NIA की विशेष अदालत ने 17 साल बाद बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और कोई भी मजहब हिंसा की वकालत नहीं करता। फैसले के बाद सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने निजी चैनल से बात करते हुए कहा, हमें पहले ही अंदेशा था कि ऐसा ही होगा। उन्होंने कहा कि अगर मुसलमान को आतंकवादी कहा जाता है तो हिंदू आतंकवादी शब्द भी मजबूरी बनता है। उन्होंने आगे कहा कि हर मजहब में कट्टरपंथी हो सकते हैं। कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने फैसले पर असंतोष जताते हुए कहा कि यह फैसला है, न्याय नहीं। उन्होंने केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि भगवा आतंक का शब्द तत्कालीन गृह सचिव आर. के. सिंह द्वारा गढ़ा गया था, जिन्हें बाद में बीजेपी में शामिल कर मंत्री और सांसद बनाया गया। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि 17 साल बाद आरोपी बरी हो गए। अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती तो क्या यह आतंकवाद पर दोहरा रवैया नहीं होगा? उन्होंने यह भी पूछा कि आरडीएक्स जैसे मिलिट्री ग्रेड विस्फोटक आखिर आया कहां से?
मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने प्रज्ञा ठाकुर को न्याय मिलने पर खुशी जताई और कहा, जब मैं उनसे जेल में मिलने गई थी तो मैं रो पड़ी थी। उन्हें अमानवीय तरीके से प्रताड़ित किया गया था। कांग्रेस ने 'भगवा आतंक' शब्द को गढ़कर सनातन संस्कृति का अपमान किया है। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के तहत 'हिंदू आतंकवाद' को थोपने का षड्यंत्र रचा था, जो अब पूरी तरह उजागर हो चुका है। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी सवाल उठाया कि अगर पुलिस ने सभी कड़ियों को जोड़कर रिपोर्ट दी थी, तो फिर दोषी कौन है? मालेगांव में ब्लास्ट हुआ था, यह तो सब मानते हैं। इस फैसले ने एक बार फिर देश की राजनीति में धर्म और आतंकवाद को लेकर तीखी बहस छेड़ दी है। विपक्ष जहां जांच और प्रक्रिया पर सवाल उठा रहा है, वहीं सत्तापक्ष इसे कांग्रेस की साजिश का पर्दाफाश बता रहा है।