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गरीबों की योजनाओं पर डाका, क्या राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहा मनरेगा घोटाला?

gonda
  • By Kanhwizz Times
  • Reported By: Kritika pandey
  • Updated: July 24, 2025

कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।

केंद्र सरकार द्वारा गरीबों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से शुरू की गई महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का वास्तविक लाभ जहां मजदूरों को मिलना चाहिए, वहीं वजीरगंज ब्लॉक क्षेत्र की कई ग्राम पंचायतों में यह योजना भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। सूत्रों के अनुसार, ग्राम पंचायत खानपुर, रायपुर, साहिबपुर, रसूलपुर, नौबस्ता और नयपुर में कार्यस्थल पर मजदूरों की जगह फर्जी फोटो और डबल रोल के जरिए मस्टररोल तैयार किए जा रहे हैं, और इनका सीधा अपलोड मनरेगा पोर्टल पर कर दिया जा रहा है। मनरेगा के तहत तालाब खुदाई, जल संरक्षण एवं अन्य ग्रामीण कार्यों में मजदूरों की उपस्थिति अनिवार्य होती है। लेकिन नयपुर गांव में तालाब खुदाई के कार्य में 107 मजदूरों की हाजिरी दर्ज की गई, जबकि स्थानीय ग्रामीणों का दावा है कि एक भी मजदूर मौके पर कार्य करता नहीं देखा गया। इसी प्रकार खानपुर में 109, रायपुर में 77, रसूलपुर में 40 और साहिबपुर में 58 मजदूरों की हाजिरी कागजों पर दिखाई गई है, लेकिन धरातल पर इन कार्यों के निशान तक नहीं हैं।

 जिम्मेदार अधिकारी बेखबर या शामिल?

स्थानीय ग्रामीणों ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि यह कोई नई बात नहीं है। ब्लॉक के अधिकतर ग्राम पंचायतों में मनरेगा के नाम पर फर्जीवाड़ा चल रहा है। "हर बार शिकायत करने पर जांच की बात कह दी जाती है, लेकिन नतीजा सिफर रहता है," एक ग्रामीण ने बताया। सूत्रों की मानें तो इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड एपीओ (असिस्टेंट प्रोजेक्ट ऑफिसर) को माना जा रहा है, जिसकी मिलीभगत से तकनीकी सहायक, ग्राम सचिव और पंचायत प्रतिनिधि मिलकर मनरेगा फंड का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। जब इस विषय में संबंधित पंचायत सचिव से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने फोन उठाने से परहेज किया और बात करने से इनकार कर दिया। इससे भी संदेह गहराता है कि कुछ छुपाया जा रहा है।

मनरेगा योजना गरीबों को साल में 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित करने के लिए चलाई गई थी, लेकिन अगर काम केवल कागजों में हो और मजदूरों के नाम पर पैसे निकाले जा रहे हों, तो यह गरीबों के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात है। यह मामला सिर्फ आर्थिक अपराध ही नहीं बल्कि सामाजिक और नैतिक स्तर पर भी अत्यंत गंभीर है, और इसकी स्वतंत्र एजेंसी से निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

 अब क्या ?

अब सवाल यह है कि  क्या प्रशासन इस मामले में निष्पक्ष जांच कराएगा? क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या मामला भी अन्य घोटालों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा? क्या गरीबों को उनका हक मिलेगा?

यदि यह घोटाला उजागर होता है और जांच निष्पक्ष होती है, तो वजीरगंज ब्लॉक के कई जिम्मेदार अफसरों और पंचायत प्रतिनिधियों पर गाज गिर सकती है। अभी देखना यह है कि यह मामला भी एक "शिकायत और चुप्पी" का उदाहरण बनता है या सख्त कार्यवाही की शुरुआत करता है।

 

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