कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।
आज अगर किसी को पैसे देने हों तो बस एक क्लिक या QR कोड स्कैन करना काफी है। UPI जैसे डिजिटल माध्यम ने लेन-देन को इतना आसान बना दिया है कि जेब में बटुआ न होने पर भी चिंता नहीं होती। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में करेंसी का ये सफर कहां से शुरू हुआ था? भारत में सबसे पहला सिक्का छठी शताब्दी ईसा पूर्व में चलन में आया था, जिसे महाजनपद काल के दौरान जारी किया गया था। इन सिक्कों को 'पंचमार्क्ड कॉइंस' कहा जाता था। ये चांदी के बने होते थे और इन पर प्रतीक चिह्न होते थे। इसके बाद विभिन्न राजवंशों जैसे मौर्य, गुप्त और मुगलों ने भी अपने-अपने सिक्के जारी किए। अकबर के समय में तांबे, चांदी और सोने के सिक्के आम हो गए थे। भारत में पहला कागज का नोट 1861 में छपा, जब ब्रिटिश सरकार ने पहली बार ₹10 का नोट जारी किया। इसे “Government of India” द्वारा जारी किया गया था।
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की स्थापना 1 अप्रैल 1935 को की गई। यह भारत की केंद्रीय बैंक है, जो करेंसी जारी करने, मौद्रिक नीति बनाने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने का कार्य करती है। स्वतंत्रता के बाद RBI ने भारत सरकार के लिए नोट छापना शुरू किया। एक समय ऐसा भी था जब भारत में ₹10,000 का नोट भी चलन में था। इसे पहली बार 1938 में छापा गया था, जिसे बाद में बंद कर दिया गया। फिर आया प्लास्टिक मनी और नेट बैंकिंग का दौर। एटीएम कार्ड, डेबिट-क्रेडिट कार्ड और फिर इंटरनेट बैंकिंग ने लोगों को कैश से काफी हद तक दूर कर दिया।2016 के नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट्स को भारी बढ़ावा मिला और फिर आया UPI यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस। अब सब्जी वाले से लेकर बड़े-बड़े शोरूम तक QR कोड से पेमेंट लेना आम बात है।यह सफर केवल तकनीक का ही नहीं, बल्कि देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता और सुविधा के विस्तार का भी है।