कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कहा कि “वसुधैव कुटुम्बकम” (सभी मानवता एक परिवार है) की बात करना और अपने परिवार के साथ नहीं रहना, यह एक विरोधाभासी स्थिति है। अदालत ने यह टिप्पणी एक मामले के दौरान की, जिसमें एक व्यक्ति ने अपने माता-पिता के साथ रहने से इंकार किया और उनके साथ रिश्ते बनाए रखने से मनाही जताई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर यह टिप्पणी की कि अगर कोई व्यक्ति समाज में रिश्तों को महत्व देने और “वसुधैव कुटुम्बकम” का नारा देता है, तो उसे अपने परिवार के साथ अच्छे रिश्ते बनाने और उन्हें पोषित करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि परिवार के सदस्य एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार होने चाहिए, और यदि कोई ऐसा नहीं करता, तो यह समाज और संस्कारों के खिलाफ है।
यह टिप्पणी एक संदेश देती है कि रिश्ते और परिवार केवल नैतिक जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति के महत्व को भी दर्शाते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला रिश्तों की अहमियत और पारिवारिक उत्तरदायित्व पर जोर देता है।