कैनविज टाइम्स, डिजिटल डेस्क ।
बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में राजनीतिक संग्राम छिड़ गया है। विपक्षी दलों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि यह प्रक्रिया चुनाव से ठीक पहले क्यों की जा रही है? अदालत ने कहा सवाल सिर्फ प्रक्रिया का नहीं, बल्कि उसके समय का भी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ नाम की प्रक्रिया पहले कभी इतनी जल्दी और बड़े पैमाने पर नहीं हुई। अब 7 करोड़ से अधिक वोटरों की सूची इतनी तेजी से अपडेट की जा रही है, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आयोग को यह अधिकार नहीं कि वो तय करे कौन नागरिक है और कौन नहीं। वहीं वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वोटर लिस्ट की प्रक्रिया नागरिकता से जुड़ी है, और इससे लोकतंत्र की बुनियाद प्रभावित हो सकती है। कोर्ट ने आधार कार्ड और वोटर ID को पहचान पत्र के रूप में अस्वीकार करने पर भी आयोग से सवाल किया। आयोग ने जवाब दिया कि आधार से नागरिकता साबित नहीं होती। इस पर कोर्ट ने कहा कि नागरिकता तय करना गृह मंत्रालय का काम है, न कि आयोग का।
विपक्ष की ओर से उठाए गए 5 मुख्य सवाल:
क्या यह प्रक्रिया संविधान और जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन है?
नागरिकता, जन्म और निवास से जुड़े दस्तावेजों को लेकर मनमानी क्यों?
क्या यह फैसला लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करता है?
क्या यह गरीब, महिला और प्रवासियों पर असमान बोझ डालता है?
चुनाव के ठीक पहले इतनी बड़ी प्रक्रिया शुरू करना क्या सही है?
चुनाव आयोग ने सफाई में कहा कि 1 जनवरी 2003 की वोटर लिस्ट में जिनके नाम हैं, उन्हें दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी। आयोग ने दावा किया कि यह प्रक्रिया संविधान के तहत और पारदर्शिता के साथ की जा रही है। इस पूरे मामले में अब अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणी और चुनाव आयोग की सफाई पर सभी की नजरें टिकी हैं।